ईस्ट-वेस्ट


कुर्ला उतारना है क्या?
नहीं।
कुर्ला उतरेगी क्या?
नहीं तो।
पीछे जाओ फिर...
ओह ठीक है।

कुर्ला आया और मैंने दरवाज़े के किनारे वाले खंबे के पास वाली जगह लेली। सीट ना मिले तो खड़े रहने के लिए सबसे अच्छी जगह होती है वो। बाहर आसमान दिखता है। किसी को कविता या साहित्य में दिलचस्पी ना भी हो तो भी वहां खड़े होकर वो तमाम कविताएं और कहानियां याद आने लगती है जो बरसों पहले आपने पढ़ी या सुनी थी।

इतने दिनों के बाद आसमान नीला था आज। बिलकुल साफ, ऐसा लग ही नहीं रहा था कि पिछली रात बारिश हुई है। वडाला उतर कर ट्रेन बदलनी थी मुझे, पर जिस गेट से उतरना था, मैं उसके ठीक उल्टी तरफ खड़ी थी। बड़ी मुश्किल से धीरे धीरे भीड़ के बीच से निकल कर इस तरफ आयी।

वडाला से सांता क्रूज जाने वाली ट्रेन में चढ़ना इतना मुश्किल नहीं था। भीड़ कम थी। सीट भी मिल गई। इस ट्रेन का डिब्बा भी पिछली वाली ट्रेन से बहुत अलग था। लोग भी अलग ही थे। सब एक जैसे थे। जैसे एक ही जगह से आएं हो और एक ही जगह को जा रहे हो।

बांद्रा स्टेशन पर काफी लोग उतर गए। ट्रेन और भी खाली हो गई। अगले से अगला स्टेशन मेरा था। फोन निकालकर घर का पता एक बार दोबारा देखा।

स्टेशन पर उतरी तो ईस्ट-वेस्ट पता करने की जद्दोजहद फिर से चालू हो गई। और हर बार की तरह इस बार भी स्टेशन से बाहर निकली तो ऑटो वाले भैया ने बताया कि मै गलत तरफ से बाहर आ गई।

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